सुनील कुमार
पत्रकार एवं कला शोधार्थी
पटना आर्ट कॉलेज के छात्रों की एक मुख्य मांग बुधवार देर शाम पटना विश्वविद्यालय प्रशासन ने मान ली, ऐसा प्रतीत होता है। प्रभारी प्राचार्य डॉ चंद्रभूषण श्रीवास्तव की जगह अब अंग्रेजी विभाग के प्रो अरुण कमल को पटना आर्ट कॉलेज का नया प्रभारी प्राचार्य बनाया गया है और इसके जरिए विश्वविद्यालय प्रशासन ने चंद्रभूषण श्रीवास्तव को बर्खास्त करने और जेल में बंद छात्रों को रिहा करने की मांग को लेकर आर्ट कॉलेज के छात्रों के करीब दो महीने के अनशन को खत्म कराने की कोशिश की है।
तो क्या छात्रों का विरोध प्रदर्शन खत्म हो गया? फेसबुक पर अनशनकारी छात्रों ने अपना स्टेटस अपडेट किया है और उसमें लिखा है कि आंदोलन जारी रहेगा। उनकी मांग है कि प्रभारी प्राचार्य फाइन आर्ट सेक्शन से हो। मतलब साफ है, अनशन अभी खत्म नहीं हुआ है। छात्रों की मांगों पर अब तक कितना गौर किया गया है, यह देखने वाली बात है।
पूरे मामले की शुरुआत हुई थी एक ठेकेदार द्वारा एक छात्र की पिटाई के मामले को लेकर और खबर के मुताबिक उस छात्र को चंद्रभूषण श्रीवास्तव के केबिन में भी पीटा गया था, दो शिक्षकों के सामने। लेकिन कार्रवाई उस ठेकेदार पर नहीं हुई, उलटे छात्र के खिलाफ ही मामला बना दिया गया। बाद में मामला तब और बिगड़ गया जब कॉलेज के आठ छात्रों को निलंबित कर दिया गया, कॉलेज के छात्र भड़क गये और तब से शुरू हुआ विरोध-प्रदर्शन हिंसक झड़प तक का रुख अख्तियार कर चुका है। लगातार बढ़ते बवाल के बीच छात्रों ने पटना विश्वविद्यालय के कुलपति वाईसी सिम्हाद्री से भी मिलने की कोशिश की, लेकिन छात्र कुलपति से तो नहीं मिल पाये, लेकिन इस बीच फायरिंग की धौंस उन्हें जरूर मिली।
पटना आर्ट कॉलेज में
क्या चल रहा है, कॉलेज किस तरह से छावनी में तब्दील हो चुका है और छात्र किन वजहों से सड़क पर विरोध-प्रदर्शन
कर रहे हैं, लाठी खा रहे हैं और आमरण-अनशन कर रहे हैं, इसकी जानकारी कुलपति वाईसी सिम्हाद्री, मुख्यमंत्री नीतीश
कुमार और इन सबसे ऊपर राज्यपाल डॉ रामनाथ कोबिंद को नहीं है ऐसा नहीं कहा जा सकता
है। छात्रों की मांग थी कि प्रभारी प्रिंसिपल की शह पर एक ठेकेदार ने एक छात्र को
बुरी तरह से पीटा था, लिहाजा उन्हें हटाया जाए। इसी मांग को पटना आर्ट कॉछात्र
कुलपति से भी मिलने गए। अगर कुलपति ने छात्रों से मुलाकात कर उन्हें यह आश्वासन तक
दिया होता कि पूरे मामले की जांच होगी, तब भी मामला इतना नहीं बिगड़ा होता। तब
सवाल यह उठता है कि क्या जान-बूझकर पूरे मामले को बिगड़ने दिया गया ताकि कोई छात्र
आत्महत्या तक के लिए उत्प्रेरित हो जाए?
सिम्हाद्री पर सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं क्योंकि अलग-अलग
विश्वविद्यालयों में उनका रिकॉर्ड छात्र हित में काम करने वाले, एक कर्मठ और
ईमानदार कुलपति की रही है। जब उन्हें दोबारा पटना विश्वविद्यालय का कुलपति बनाया
गया था तब उनसे उम्मीद थी कि वो विश्वविद्यालय और उनसे संबद्ध कॉलेजों के लिए कुछ
बेहतर करेंगे, लेकिन कुछ समय पश्चात् ही नीतीश सरकार और उनके बीच टकराव की स्थिति
बनने लगी थी। तब सिम्हाद्री ने खुले तौर सरकार पर आरोप लगाया था कि राजनीतिक
संरक्षण में कई छात्र नेता बने हुए हैं और पुलिस उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए
इच्छुक नहीं है। क्या ये वही सिम्हाद्री हैं जिन्होंने एक इंटरव्यू में साफ-साफ
कहा था कि बिहार में कॉलेजों के शिक्षकों, छात्र नेताओं और राजनीतिज्ञों का गठजोड़
सक्रिय है जो शिक्षा व्यवस्था को पटरी पर नहीं आने देता चाहता।
सरकार पर सवाल खड़े करते हुए जो कुलपति यह कहने का साहस
रखता है कि अगर सरकार विश्वविद्यालय को आर्थिक रूप से सपोर्ट नहीं कर सकती, तो उसे
विश्वविद्यालय बंद कर देना चाहिए, वही कुलपति किन कारणों से पटना आर्ट कॉलेज के
मामले में अपना आंख-मुंह सील लेते हैं, यह भी जांच का विषय है। सवाल है कि क्या
पटना विश्वविद्यालय का कुलपति इतना बेबस है कि तमाम आरोपों में घिरे एक प्रभारी
प्रचार्य तक पर कोई कार्रवाई नहीं कर सकता था? कुलपति के
समक्ष इस सवाल को उलट कर भी देखने की जरूरत है कि एक शिक्षक तक की अर्हता नहीं
रखने वाला एक प्रभारी प्रचार्य किन वजहों से और किसके संरक्षण में इतना सशक्त हो
जाता है कि उसके आगे विश्वविद्यालय का कुलपति तक बेबस हो जाता है। केवल कुलपति ही
क्यों, छात्र आंदलनों को लेकर मुखर रहे मुख्यमंत्री नीतीश सरकार पटना आर्ट कॉलेज
से नजरें फेर लेते हैं।
कुलपति इस वजह से भी सवालों के घेरे में हैं कि अगर
चंद्रभूषण श्रीवास्तव शिक्षक होने की अर्हता भी नहीं रखते थे, तब उन्हें प्रभारी
प्राचार्य का पद कैसे दे दिया गया? अगर कुलपति चंद्रभूषण
श्रीवास्तव को लेकर किसी दवाब में है, तब उन्हें उस दवाब का खुलासा करना चाहिए, जो
उन्हें चुप्पी साधे रखने पर मजबूर कर रहा है। क्या इसकी वजह वह है जिसकी तरफ सोशल
मीडिया पर लगातार इशारा किया जा रहा है कि मुख्यमंत्री के करीबी किसी वरिष्ठ अफसर
से चंद्रभूषण श्रीवास्तव की नजदीकी ने सबसे मुंह पर ताला जड़ा हुआ है? छात्रों के अनशन को खत्म कराने को लेकर हुई मीटिंग में कुसलपति
सोते हुए से दिखते हैं, तो क्या यहां भी वही नजदीकी की बेफिक्री है या वो अपनी बेबसी
की नींद पूरी कर रहे थे, इसका जवाब भी कुलपति को आज नहीं तो कल देना होगा।
इन सबसे इतर, एक सवाल यह भी है आखिर पूरे मसले पर पटना
आर्ट कॉलेज को शिक्षक चुप क्यों है? कॉलेज के ही
एक शिक्षक ने नाम नहीं लिखने की शर्त पर यह खुलासा किया कि आर्ट कॉलेज में चंद्रभूषण
श्रीवास्तव के गुट का वर्चस्व है और उनके विरोधी उन्हें हटाने की साजिश रच रहे हैं
क्योंकि हाल ही में कॉलेज का नैक से नाता जुड़ा है। नैक से नाता जुड़ने के बाद अब
आर्ट कॉलेज में कई तरह के फंड की फिरकी गिरेगी। वह फिरकी विरोधियों के
पाले में गिरे, इसकी इच्छा रखे विरोधी गुट छात्रों के अनशन को हवा देने में जुटा है
और उन्हें गुमराह कर रहा है। इस बारे में मैंने दूसरे गुट से लगातार संपर्क साधने की कोशिश की, लेकिन उनसे संपर्क साधा नहीं जा सका।
बहरहाल, चंद्रभूषण श्रीवास्तव पर उठ रहे सवालों की जांच कितनी निष्पक्ष होगी, इसका अंदाजा सरकार के रुख लगाया जा सकता है, लेकिन इस बात में थोड़ा दम दिखता है शिक्षकों की आपसी राजनीति में भी छात्र पिस रहे हैं। अगर ऐसा नहीं है, तो उन दो शिक्षकों ने तब भी अपना मुंह क्यों नहीं खोला, उसी छात्र के खिलाफ केस तैयार किया गया, जिसकी पिटाई हुई? वैसे चंद्रभूषण विरोधी फंड की फिरकी को अपने पाले में लाने की साजिश कर रहे हैं, यह बात जितनी एक गूट पर लागू होती है, उतनी ही दूसरे गुट पर भी। फंड
की फिरकी आर्ट कॉलेज के कितने आसपास है, इसकी जानकारी सबसे ज्यादा चंद्रभूषण के
पास ही होगी और यह कौन नहीं जानता है कि प्रिंसिपल का पद कितने लाभ का है और उसके
आर्थिक अधिकार कितने है?
पटना विश्वविद्यालय के कॉलेजों में फंड की फिरकी का खेल किस तरह से चल रहा है, इसकी तरफ सिम्हाद्री अपने दूसरे कार्यकाल के शुरुआती दौर में ही
इशारा कर चुके हैं। तो क्या फिरकी का यह वही खेल है जिसकी वजह से चंद्रभूषण
श्रीवास्तव पर कोई एक्शन नहीं लिया गया और अंतत: उनके छुट्टी पर जाने या भेजे जाने के बाद प्रो. अरुण कमल को प्रभारी प्राचार्य बनाकर
खानापूर्ति कर दी गयी। अगर ऐसा है, तो उसकी वजहें भी साफ है। पटना के कलाकार, शिक्षक
और छात्र सभी कह रहे हैं कि सब जानते हैं कि उस फंड की फिरकी की सबसे मजबूत डोर
किसके हाथ है। सब चुप हैं क्योंकि सबको अपनी-अपनी चिंता है, अपने संभावित संसाधनों और सुविधाओं
की चिंता है। आखिर संसाधनों और सुविधाओं पर अपना कब्जा कौन नहीं चाहता है? फिर चाहे वह चंद्रभूषण श्रीवास्तव हों, कुलपति हों या कोई और।
Really.
ReplyDeleteon the interval of every five or ten Years Arts collage Patna use to face this situation.where only Students are facing and suffering with the situation.
I am agree with this article most important is "FUND"
Govt .of bihar is not able to find out a single person for the post of principle for Art Collage Patna?
is this the main reason where All "So Called" Great Artist of Bihar is Silent,No one even like to Comment on this issue?
Dear friend please come forward,support these students otherwise days will come when your future generation will be struggling in Other state for Art Studies.
Please!Please!Please!
HELP THESE STUDENTS TO SAVE ART COLLAGE OF PATNA
Mukhya sachiv anjani kumar singh..... Bacha raha hai.... C. B. Srivastava ko.
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